भूमिका
“क्रोध मनुष्य की बुद्धि को नष्ट कर देता है, और प्रेम उसे दिव्यता की ओर ले जाता है।” — श्रीमद्भगवद्गीता
गुस्सा और प्यार केवल आध्यात्मिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन की सबसे गहरी और व्यावहारिक सच्चाइयों को उजागर करती हैं। इस अद्भुत ग्रंथ में गीता ने जहां एक ओर क्रोध को आत्म-विनाश का कारण बताया है, वहीं प्रेम को आत्मा की उच्चतम अवस्था कहा है। आइए विस्तार से समझते हैं कि भगवद गीता गुस्से और प्यार के बारे में क्या सिखाती है।
Table of Contents
“जहाँ गुस्सा जवाब माँगता है, वहाँ प्यार मौन से समझा देता है – और यही है आत्मा की असली जीत।”
— Desh Ki Khabare
गुस्सा क्या है? (What is Anger?)

गुस्सा (क्रोध) एक तीव्र मानसिक और भावनात्मक प्रतिक्रिया है, जो तब उत्पन्न होती है जब हमारी इच्छाएं, अपेक्षाएं या विश्वास टूटते हैं। यह भावना अक्सर असहायता, अपमान या नियंत्रण खोने के कारण आती है। गीता के अनुसार, यह हमारे विवेक और निर्णय शक्ति को नष्ट कर देता है।
गुस्से की विशेषताएँ:
- यह अचानक आता है, परन्तु लंबे समय तक प्रभाव छोड़ता है।
- यह न केवल दूसरों को, बल्कि स्वयं को भी हानि पहुँचाता है।
- यह मन, शरीर और आत्मा – तीनों पर नकारात्मक असर डालता है।
भगवद गीता में गुस्से के बारे में:
“क्रोध से भ्रम होता है, भ्रम से स्मृति भ्रष्ट होती है, स्मृति के भ्रष्ट होने से बुद्धि नष्ट होती है और बुद्धि के नष्ट होने से व्यक्ति का पतन होता है।”
(भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 63)
इसका मतलब है कि गुस्सा सिर्फ एक भावना नहीं है, बल्कि विनाश का बीज है, जो हमारी आत्मा को अंधकार में ढकेल सकता है।
प्यार क्या है? (What is Love?)

प्यार (प्रेम) एक दिव्य भावना है, जो निःस्वार्थता, करुणा, अपनापन और आत्मिक जुड़ाव पर आधारित होती है। यह केवल एक भावनात्मक अनुभव नहीं, बल्कि आत्मा की ऊर्जा है जो हमें दूसरों से जोड़ती है।
प्यार की विशेषताएँ:
- यह संयम, क्षमा और करुणा से भरा होता है।
- प्यार में अपेक्षा नहीं, केवल समर्पण होता है।
- यह मानसिक और आत्मिक शांति का स्रोत होता है।
भगवद गीता में प्यार की परिभाषा:
“जो सब प्राणियों में समभाव रखता है और सुख-दुख में सम रहता है, वह मेरा भक्त है और मुझे प्रिय है।”
(भगवद गीता, अध्याय 12, श्लोक 15)
गीता के अनुसार, सच्चा प्रेम वह है जो ईश्वर की अनुभूति तक ले जाए — जहां भेदभाव नहीं होता, केवल करुणा और समता होती है।
गुस्सा हमें हमारे मूल स्वभाव – शांति और करुणा – से दूर करता है, जबकि प्यार हमें हमारे उच्चतम स्वरूप – ईश्वर से एकता – की ओर ले जाता है।
गुस्सा और प्यार हमें यही सिखाते हैं कि:
- जब तक हम गुस्से के वश में हैं, हम खुद के शत्रु हैं।
- जब हम प्रेम से भर जाते हैं, हम संपूर्ण ब्रह्मांड के मित्र बन जाते हैं।
प्यार से आरम्भ और गुस्से से अंत:
जीवन में गुस्से और प्यार की जड़ें हमारे आत्मिक आरंभ और अंत से भी जुड़ी होती हैं। यदि आपने अभी तक यह नहीं पढ़ा है कि भगवद गीता 'आरंभ और अंत' के बारे में क्या सिखाती है, तो यहाँ क्लिक करें और जानें इस रहस्य को विस्तार से।
गुस्से की आग: आत्म-विनाश का पहला कदम

Bhagavad Gita Teachings on गुस्सा और प्यार में भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट रूप से कहा है कि क्रोध का परिणाम हमेशा विनाश की ओर ले जाता है। गीता के अध्याय 2, श्लोक 62-63 में अर्जुन को उपदेश देते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं:
“क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है, भ्रम से स्मृति भ्रंश हो जाती है; स्मृति के भ्रष्ट होने से बुद्धि नष्ट हो जाती है, और बुद्धि के नष्ट होने से व्यक्ति का पतन हो जाता है।”
क्रोध के परिणाम:
- बुद्धि का क्षय: क्रोध व्यक्ति की विवेकशक्ति को हर लेता है।
- रिश्तों में दूरी: क्रोधित व्यक्ति अपनों को भी दुःख देता है।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव: क्रोध तनाव, उच्च रक्तचाप और मानसिक समस्याओं का कारण बनता है।
Bhagavad Gita Teachings on गुस्सा और प्यार बताती हैं कि क्रोध सिर्फ एक भाव नहीं, बल्कि यह मन का विष है, जो व्यक्ति को धीरे-धीरे अंदर से खा जाता है।
प्यार: आत्मा की सच्ची भाषा

भगवद गीता के अनुसार, प्रेम केवल एक भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह करुणा, सहनशीलता और आत्मिक एकता की अभिव्यक्ति है। गुस्सा और प्यार प्रेम को मन की स्थिरता और ईश्वर से जुड़ने का माध्यम मानती हैं।
गीता में प्रेम का अर्थ:
- निःस्वार्थता: प्रेम वह है जिसमें किसी अपेक्षा की गुंजाइश नहीं होती।
- क्षमा: प्रेम में व्यक्ति क्षमा कर पाता है और अपने अहंकार को त्याग देता है।
- दूसरों की सेवा: जो प्रेम करता है, वह सेवा करता है, भेद नहीं करता।
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को यह सिखाते हैं कि ईश्वर के प्रति अनन्य प्रेम ही मोक्ष का मार्ग है। यही गुस्सा और प्यार का मूल है — अपने भीतर प्रेम जगाओ, और गुस्से को त्याग दो।
गुस्सा गलती को और प्यार माफ़ी को जन्म देता हे:
कई बार हमारा गुस्सा हमें ऐसे निर्णय लेने पर मजबूर कर देता है जिनका हमें बाद में पछतावा होता है।
भगवद गीता सिखाती है कि गलती करना स्वाभाविक है, लेकिन माफ़ी माँगना और देना आत्मा का उत्कर्ष है।
पढ़ें: गलती और माफ़ी – भगवद गीता क्या सिखाती है?
मन को नियंत्रित कैसे करें?
भगवद गीता केवल समस्या नहीं बताती, समाधान भी देती है। यदि गुस्सा नियंत्रण में न हो रहा हो, तो गीता के अनुसार इन तरीकों को अपनाएं:
ध्यान और आत्म-निरीक्षण:
“जो अपने मन को वश में करता है, वह स्वयं का मित्र बनता है।”
रोज़ का ध्यान और आत्म-चिंतन क्रोध पर नियंत्रण में सहायक होता है।
कर्मयोग की भावना:
“कर्म करो, फल की चिंता मत करो।”
यह विचार हमें अपेक्षाओं से मुक्त करता है और गुस्से का कारण समाप्त करता है।
संगति का प्रभाव:
“जैसी संगति, वैसा मन।”
सकारात्मक और शांतिपूर्ण लोगों की संगति हमें भी वैसा ही बनाती है।
गुस्सा और प्यार यह स्पष्ट करते हैं कि मन को समझाना ही आत्म-ज्ञान की पहली सीढ़ी है।
प्रेम का वास्तविक अर्थ क्या है?
गीता प्रेम को भौतिक आकर्षण नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जुड़ाव मानती है। अर्जुन और कृष्ण के संवाद से स्पष्ट होता है कि सच्चा प्रेम वह है जो मार्गदर्शन देता है, जो कठिनाई में भी साथ देता है।
“प्रेम वह है जो स्वार्थ नहीं देखता, जो सत्य की राह पर चलने में सहायता करता है।”
गुस्सा और प्यार यह भी सिखाते हैं कि प्रेम केवल मनुष्यों से नहीं, बल्कि समस्त जीवों से होना चाहिए।
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प्यार और आकर्षण के बीच बहुत ही गहरा अंतर है जिसे हमे जानना ज़रूरी हे| इसके लिए हमने गहराई से ब्लॉग लिखा हे जो आपको पसंद आएगा।
पढ़ें: प्यार और आकर्षण के बीच अंतर: क्या आपकी भावनाएँ सच्ची हैं?
गुस्सा और प्यार: क्यों आज के युग में आवश्यक हैं?
वर्तमान समय में जहां हर कोई जल्दबाज़, अपेक्षाओं से घिरा और मानसिक तनाव में है, वहां गीता के ये उपदेश अमृत समान हैं।
कार्यालय में तनाव हो या पारिवारिक झगड़े – गीता कहती है:
- गुस्से को जीतने वाला ही सच्चा योद्धा है।
- प्रेम में शक्ति है, जो युद्धों को भी रोक सकता है।
गुस्सा और प्यार आज की दुनिया में इंसानियत को बचाए रखने का मार्ग हैं।
“जो अपने भीतर प्रेम को स्थान देता है, वह संसार को शांति दे सकता है।”
इस एक वाक्य में गुस्सा और प्यार की पूरी आत्मा समाई हुई है। अगर हम गीता के उपदेशों को जीवन में अपनाएं, तो न केवल व्यक्तिगत जीवन शांत होगा, बल्कि समाज में भी प्रेम और सद्भावना फैलेगी।
गुस्सा और प्यार में अंतर: एक आत्मिक दृष्टिकोण
गुस्सा (क्रोध) और प्यार (प्रेम) दोनों ही मानवीय भावनाएँ हैं, लेकिन इन दोनों का स्वभाव, प्रभाव और परिणाम एक-दूसरे से बिल्कुल विपरीत होता है। आइए इनका तुलनात्मक अंतर समझते हैं:
पहलू | गुस्सा (Anger) | प्यार (Love) |
---|---|---|
स्वभाव | विस्फोटक, आवेगपूर्ण | शांत, सहनशील |
कारण | अपेक्षाएँ पूरी न होना, अहंकार का आघात | करुणा, आत्मीयता, निःस्वार्थता |
परिणाम | संबंधों में टूटन, मानसिक अशांति | संबंधों में मजबूती, मानसिक शांति |
प्रभाव | शरीर में तनाव, रक्तचाप वृद्धि | शरीर में सुकून, सकारात्मक ऊर्जा |
दिशा | विनाश की ओर ले जाता है | निर्माण और विकास की ओर ले जाता है |
सम्बन्धों पर प्रभाव | नफरत, अलगाव और चोट | अपनापन, जुड़ाव और समर्थन |
जीवन पर प्रभाव | निर्णय क्षमता नष्ट करता है | विवेक को जागृत करता है |
आध्यात्मिक दृष्टि | अज्ञान का संकेत | आत्मज्ञान और ईश्वर से जुड़ाव का प्रतीक |
भगवद गीता की दृष्टि से | “क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है” (अध्याय 2, श्लोक 63) | “जो सबमें समभाव रखता है, वही मुझमें है” (अध्याय 6, श्लोक 29) |
“गुस्से में व्यक्ति खुद को खो देता है, और प्यार में खुद को पा लेता है।”
महाभारत की कहानी: अश्वत्थामा का गुस्सा बनाम अर्जुन का प्रेमपूर्ण धैर्य

महाभारत का युद्ध अपने अंतिम चरण में था। सभी योद्धा या तो वीरगति को प्राप्त हो चुके थे या घायल थे। उस रात अश्वत्थामा, जो अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु से अत्यंत क्रोधित था, प्रतिशोध की अग्नि में जल रहा था।
गुस्से का अंधकार:
गुस्से में अंधे होकर अश्वत्थामा ने रात्रि में पांडव शिविर में घुसकर सोए हुए द्रौपदी के पाँचों पुत्रों की हत्या कर दी। वह समझ रहा था कि वह पांडवों को मार रहा है, लेकिन उसने निर्दोष बच्चों को मार डाला।
सुबह जब यह समाचार द्रौपदी और अर्जुन को मिला, तो पूरा पांडव पक्ष शोक में डूब गया।
द्रौपदी रोते हुए अर्जुन से बोली:
“मैं जानती हूँ कि मेरा पुत्र लौटकर नहीं आएगा, लेकिन मैं नहीं चाहती कि एक माँ को उसी पीड़ा से गुजरना पड़े जिससे मैं गुज़री हूँ। अश्वत्थामा को मारना मत… बस उसका अहंकार तोड़ दो।”
प्यार का धैर्य और करुणा:
अर्जुन ने अश्वत्थामा को युद्ध में पकड़ लिया। उसके पास दो विकल्प थे:
- प्रतिशोध में उसे मार दे,
- या प्रेम, करुणा और धर्म के मार्ग पर चलते हुए उसे दंडित करे।
अर्जुन ने उसका मणि (divine jewel) छीनकर उसे अपमानित किया लेकिन जीवनदान दे दिया – क्योंकि उसने द्रौपदी के प्रेम और क्षमा के भाव को अपनाया।
भगवद गीता का सिद्धांत इस कथा में:
“क्रोध विनाश का कारण है, और क्षमा आत्मा की महानता का परिचय।”
(गर्भित भाव – गीता अध्याय 16)
सीख जो जीवन बदल सकती है:
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि गुस्सा हमें राक्षस बना सकता है, चाहे हम कितने भी ज्ञानी या शक्तिशाली क्यों न हों। और प्यार, चाहे वह सबसे कठिन स्थिति में भी हो, अगर उसे चुना जाए – तो वह आपको धरती पर ईश्वर के समान बना सकता है।
- गुस्सा अश्वत्थामा को शापित बना गया – जीवनभर भटकने को मजबूर।
- प्यार और क्षमा अर्जुन और द्रौपदी को ईश्वर के मार्ग पर स्थापित कर गए – उन्हें इतिहास में अमर कर दिया।
श्लोक-आधारित उद्धरण:
“क्रोध से मोह उत्पन्न होता है, मोह से स्मृति भ्रमित हो जाती है, स्मृति भ्रम से बुद्धि नष्ट होती है और बुद्धि नष्ट होने से मनुष्य का पतन होता है।”
(भगवद गीता – अध्याय 2, श्लोक 63)
निष्कर्ष: आंखें खोल देने वाला संदेश
गुस्सा और प्यार, दोनों ही हमारे जीवन के बेहद ताक़तवर भाव हैं।
गुस्सा हमें क्षणिक संतुष्टि देता है, लेकिन दीर्घकालीन पछतावा छोड़ जाता है।
वहीं प्यार हमें धैर्य, समझ, क्षमा और करुणा की ओर ले जाता है — और यही आत्मा की शांति का मार्ग है।
भगवद गीता सिखाती है कि हर बार जब जीवन में कोई चुनाव हो —
गुस्से की आग और प्रेम की शांति के बीच — तो उस राह को चुनो, जो आत्मा को हल्का कर दे, अहंकार को नहीं।
युद्ध चाहे महाभारत का हो या भीतर मन का — जीत उन्हीं की होती है जो अपने गुस्से को जीतकर प्रेम से जवाब देते हैं।
FAQs: गुस्सा और प्यार – भगवद गीता की नजर से
भगवद गीता में गुस्से को कैसे देखा गया है?
भगवद गीता के अनुसार, गुस्सा कामना से उत्पन्न होता है और यह आत्मा के ज्ञान को नष्ट करता है। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि गुस्सा व्यक्ति की बुद्धि को भ्रष्ट कर देता है और विनाश का मार्ग खोल देता है।
गीता के अनुसार प्यार क्या है?
गीता में प्रेम को त्याग, समर्पण और निष्काम भाव से जोड़ा गया है। यह स्वार्थरहित होता है और आत्मा की शांति से जुड़ा होता है। सच्चा प्यार मोह या बंधन नहीं, बल्कि मुक्ति की दिशा में एक कदम होता है।
क्या भगवद गीता गुस्से पर नियंत्रण की कोई तकनीक सिखाती है?
हाँ, गीता ध्यान (Meditation), आत्मसंयम, और कर्मयोग के माध्यम से गुस्से को नियंत्रित करने का मार्ग दिखाती है। श्रीकृष्ण अर्जुन को सिखाते हैं कि कैसे वह स्वयं को स्थिर रखें और मन को वश में करें।
क्या प्यार और गुस्से का कोई संबंध है?
हाँ, जब प्यार में अपेक्षाएँ जुड़ जाती हैं और वे पूरी नहीं होतीं, तब गुस्सा उत्पन्न हो सकता है। गीता सिखाती है कि बिना अपेक्षा के दिया गया प्रेम ही सच्चा होता है, जो गुस्से से मुक्त होता है।
क्या भगवद गीता आज के समय में भी गुस्सा और प्यार की समस्याओं का समाधान दे सकती है?
बिल्कुल। गीता की शिक्षाएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं। चाहे वो रिश्तों में तनाव हो या मानसिक अशांति — गीता का दृष्टिकोण गहराई से आत्ममंथन, संतुलन और आंतरिक शांति पर आधारित है।
गीता में ऐसा कौन सा श्लोक है जो गुस्से से बचने की प्रेरणा देता है?
भगवद गीता अध्याय 2, श्लोक 63 में कहा गया है:
“क्रोधात् भवति सम्मोहः, सम्मोहात् स्मृति विभ्रमः…”
इसका अर्थ है कि क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है, और स्मृति भ्रम से बुद्धि का नाश होता है। अंततः व्यक्ति पतन की ओर चला जाता है।
क्या भगवद गीता के अनुसार सच्चा प्रेम ईश्वर से जुड़ा होता है?
हाँ, गीता में सच्चे प्रेम को आत्मा और परमात्मा के मिलन के रूप में देखा गया है। जब प्रेम किसी भी स्वार्थ से परे होता है और उसमें भक्ति का भाव होता है, तब वह ईश्वर से जुड़ जाता है।
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