प्रयागराज में चल रहे Mahakumbh 2025 में अब तक 63 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं ने Prayagraj Sangam Snan किया है। यह भव्य आयोजन 13 जनवरी से प्रारंभ हुआ था और 26 फरवरी को Maha Shivratri Snanके अवसर पर अंतिम शाही स्नान के साथ संपन्न होगा। श्रद्धालुओं की आस्था और भक्ति के चलते यह Mahakumbh एक ऐतिहासिक आयोजन बन चुका है।
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63 करोड़ श्रद्धालुओं ने लिया Prayagraj Sangam Snan
Mahakumbh में अब तक 63 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आ चुके हैं और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। 24 फरवरी तक ही लगभग 1.30 करोड़ श्रद्धालुओं Prayagraj Sangam Snan किया। अंतिम Maha Shivratri Snan के दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ने की संभावना है।
Mahakumbh के प्रमुख स्नान पर्व

Mahakumbh 2025 के दौरान अब तक तीन प्रमुख स्नान पर्व संपन्न हो चुके हैं:
- मकर संक्रांति स्नान (15 जनवरी)
- मौनी अमावस्या स्नान (9 फरवरी)
- बसंत पंचमी स्नान (14 फरवरी)
अब अंतिम महाशिवरात्रि स्नान (26 फरवरी) के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ने की संभावना है।
Mahakumbh 2025 के लिए विशेष प्रबंध
प्रयागराज प्रशासन ने Mahakumbh के दौरान भारी भीड़ को देखते हुए 25 फरवरी से नो व्हीकल जोन लागू कर दिया है। 26 फरवरी को शाम 6 बजे से पूरे शहर में यह प्रतिबंध प्रभावी रहेगा।
- आवश्यक सेवाओं और मेडिकल वाहनों को छूट दी गई है।
- सुरक्षा के लिए 50,000 से अधिक पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है।
- कुंभ क्षेत्र में 24/7 हेल्थ कैंप, कंट्रोल रूम और जल आपूर्ति की व्यवस्था की गई है।
Mahakumbh 2025: आस्था और संस्कृति का संगम
Mahakumbh भारत का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 वर्ष में एक बार प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में आयोजित किया जाता है। श्रद्धालु गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती नदी के संगम में Prayagraj Sangam Snan कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं। यह केवल धार्मिक आयोजन ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और एकता का भी प्रतीक है।
Mahakumbh 2025 से जुड़ी खास बातें:
- यह अब तक का सबसे बड़ा कुंभ मेला है जिसमें 63 करोड़ से अधिक श्रद्धालु शामिल हुए हैं।
- आधुनिक सुविधाओं और सुरक्षा उपायों के साथ इसका आयोजन किया जा रहा है।
- दुनिया भर से साधु-संत, अखाड़े, और विदेशी पर्यटक इस आयोजन में भाग ले रहे हैं।
महाशिवरात्रि पर अंतिम शाही स्नान

26 फरवरी कोMaha Shivratri Snan के दिन अंतिम शाही स्नान होगा। इस दौरान नागा साधु, अखाड़ों के महंत और करोड़ों श्रद्धालु Prayagraj Sangam Snan आस्था की डुबकी लगाएंगे। यह स्नान सबसे पवित्र माना जाता है और इसे मोक्ष प्राप्ति के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है।
श्रद्धालुओं के लिए एडवाइजरी:
- भीड़ से बचने के लिए प्रशासन के निर्देशों का पालन करें।
- यातायात प्रतिबंधों के कारण सार्वजनिक परिवहन का अधिक उपयोग करें।
- अपने सामान और बच्चों का विशेष ध्यान रखें।
Mahakumbh 2025: एक ऐतिहासिक आयोजन
Mahakumbh केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय परंपराओं, संस्कृति और अध्यात्म का भव्य प्रदर्शन है। 63 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं की भागीदारी इसे एक ऐतिहासिक आयोजन बना रही है। 26 फरवरी को महाशिवरात्रि स्नान के साथ यह Mahakumbh संपन्न होगा, लेकिन इसकी आध्यात्मिक ऊर्जा हमेशा बनी रहेगी।
महाकुंभ की महिमा
पुराणों में मिलता है वर्णन
कुंभ आयोजन का आधार एक पौराणिक कथा है। इसके मुताबिक, सागर से अमृत खोजने के लिए मंथन हुआ। इस मंथन से मिले अमृत की बूंदें जिन चार जगहों पर नदियों में गिरीं, वहां कुंभ आयोजन होते हैं। इस कथा का पूरा वर्णन विष्णु पुराण, कूर्म पुराण, स्कंद पुराण, भागवत पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। इसके अलावा कुंभ से जुड़ी कई दंतकथाएं भी लोगों के बीच काफी मशहूर हैं।
2500 साल पहले कुंभ!
कुंभ आयोजन का सबसे प्राचीन वर्णन करीब 2500 साल पहले का मिलता है. चंद्रगुप्त मौर्य के समय (321-297 ईसा पूर्व) में यूनानी राजदूत और यात्री मेगस्थनीज उनके दरबार में आया था. यात्रा पर आधारित अपनी पुस्तक इंडिका में मेगस्थनीज ने गंगा नदी को लेकर भारतीय जनमानस की मान्यताओं का जिक्र किया है. उन्होंने सीधे तौर पर ‘कुंभ’ शब्द का इस्तेमाल तो नहीं किया है, लेकिन उन्होंने नदियों में लोगों के बड़े हुजूम के स्नान करने और उनके किनारे बड़े धार्मिक समारोह के आयोजन का जिक्र जरूर किया है.
कुंभ में कपड़े तक दान करने वाला राजा
वैसे तो कुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन से जुड़े पौराणिक कथाओं से बताया जाता है, लेकिन इसका व्यवस्थित और व्यापक रूप से आयोजित होना सम्राट हर्षवर्धन के समय (606-647 ईस्वी) में प्रमुखता से उभरता है. हर्षवर्धन के बारे में ये आम है कि वह हर कुंभ आयोजन के दौरान अपनी सारी संपत्ति दान कर देते थे. हर्ष ने एक बार अपने कपड़े तक दान कर दिए और अपनी बहन की पोशाक पहन कर महल लौटे थे.
जब बादशाह अकबर पहुंचा प्रयागराज
मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल और उसकी जिंदगी को पन्नों में समेटती किताब है अकबरनामा. अबुल फ़ज़ल ने इसे 1589 से 1596 के बीच लिखा था, जिसमें वह प्रयाग का जिक्र ‘पयाग’ नाम से करता है. किताब के मुताबिक, 1567 में अकबर पयाग पहुंचा था. वह हिंदू लोगों के बीच मशहूर बड़े आयोजनों के प्रति आकर्षित था और उसे देखने गया था. बादशाह चाहता था कि गंगा-जमुना के मिलने वाली इस पाक जमीन पर दुर्ग बनाया जाए.
चीनी ह्वेनसांग ने भी किया प्रयाग कुंभ का जिक्र
सम्राट हर्षवर्धन के समय भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग भी प्रयाग में कुंभ के साक्षी बने. अपनी किताब ‘सी-यू-की’ में वह लिखते हैं कि देशभर के शासक धार्मिक पर्व में दान देने प्रयाग आते थे. उनके मुताबिक, संगम किनारे स्थित पातालपुरी मंदिर में एक सिक्का दान करना हजार सिक्कों के दान के बराबर पुण्य वाला माना जाता था. स्पष्ट है कि प्रयाग में मौजूद पातालपुरी मंदिर का इतिहास भी हजारों साल पुराना है.