रथयात्रा क्यों मनाई जाती है?

Rathyatra

जगन्नाथ रथ यात्रा का पर्व प्रमुख त्योहारों में एक हैं. इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा 20 जून को निकाली जाएगी.

रथयात्रा का पर्व

इस पर्व को मनाने के पीछे कुछ मान्यताएं है. जिसमें से सर्वप्रचिलित  मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा नें भगवान जगन्नाथ जी से  द्वारका दर्शन करने की इच्छा जाहिर की जिसके फलस्वरूप भगवान ने सुभद्रा को  रथ से भ्रमण करवाया तब से हर वर्ष इसी दिन जगन्नाथ यात्रा निकाली जाती है।

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के लिए तीन रथ तैयार किये जाते हैं.

रथयात्रा का पर्व

रथ यात्रा में सबसे आगे श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का रथ रहता है जिसमें 14 पहिये रहते हैं और इसे तालध्वज कहते हैं, दूसरा रथ 16 पहिये वाला श्रीकृष्ण का रहता है  जिसे नंदीघोष या गरूणध्वज नाम से जाना जाता है और तीसरा रथ श्रीकृष्ण की  बहन सुभद्रा का रहता है जिसमें 12 पहिये रहते हैं और इसे दर्पदलन या पद्मरथ  कहा जाता है।

तीनों रथों को उनके रंग और लंबाई से पहचाना जाता है।

रथयात्रा का पर्व

रथयात्रा के पीछे एक पुरानी कहानी प्रचिलित है की ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन  भगवान जगन्नाथ का जन्म हुआ था. उस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम  और बहन सुभद्रा को रत्नसिंहासन से उतार कर भगवान जगन्नाथ के मंदिर के पास  बने स्नान मंडप में ले जाया जाता है।

रथयात्रा का पर्व

फिर 108 कलशों से उनका शाही स्नान होता है जिससे भगवान  जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं और उन्हें बुखार आ जाता है. इसके बाद भगवान  जगन्नाथ को एक विशेष स्थान में रखा जाता है जिसे ओसर घर कहते हैं।

रथयात्रा का पर्व

15 दिन बाद भगवान जगन्नाथ स्वस्थ होकर घर से निकलते हैं और भक्तों को दर्शन  देते हैं. इसे नवयौवन नेत्र उत्सव भी कहते हैं. इसके बाद आषाढ़ शुक्ल की  द्वितीया को भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ रथ में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।